हिमाचल प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का एक ही दिन रैली करने का कार्यक्रम था, पर प्रत्याशियों की मांग के मद्देनजर वह अब तक करीब दर्जन भर चुनावी सभाएं कर चुके हैं

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क

लखनऊ : हिमालय एवं हिमाचल प्रदेश से गोरक्षपीठ (गोरखपुर) का बेहद घनिष्ट एवं पुराना नाता रहा है। हिमाचल प्रदेश में हो रहे विधानसभा के इस चुनाव में पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस रिश्ते को और प्रगाढ़ कर गए। यही वजह है कि उनकी हर चुनावी सभा में भीड़ का रिकॉर्ड टूटा। हालांकि हिमाचल प्रदेश में उनका एक ही दिन रैली करने का कार्यक्रम था, पर प्रत्याशियों की मांग के मद्देनजर अब तक वह हमीरपुर के बड़सर, मंडी के सरकाघाट एवं दारांग, सोलन के दून एवं कसौली, कांगड़ा के ज्वाली, पालमपुर एवं ज्वालामुखी, बिलासपुर के घुमारवीं, ऊना के हरोली, कुल्लू के आनी और शिमला के ठियोग में करीब दर्जन भर चुनावी सभाएं कर चुके हैं।

ये है हिमालय से गोरक्षपीठ का रिश्ता
रही हिमालय एवं हिमाचल से गोरक्षपीठ से रिश्ते की बात, तो योगी आदित्यनाथ खुद मूल रूप से हिमालय की गोद में बसे देवभूमि उत्तराखंड (पौड़ी गढ़वाल, यमकेश्वर, पंचुर) के हैं। नाथपंथ में दीक्षित होने के पहले उनकी परवरिश एवं पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड में ही हुई थी। संयोग से उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ भी उत्तराखंड (गढ़वाल कांडी) के ही थे। उनकी जन्मतिथि 18 मई 1919 है। वह राय सिंह विष्ट के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम कृपाल सिंह विष्ट था। जिस उत्तराखंड ने उनको जन्म दिया उसी ने उनको एक बार नया जीवन भी दिया। वह बचपन से ही विरक्त थे। एकबार साधु-संतों के साथ वह ऋषिकेश से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री एवं कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गये। वापसी में उनको हैजा हो गया। हालात इतनी गंभीर हो गई कि उनके साथी उनके जीवन की आस छोड़ आगे बढ़ गए। पर भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था।

उल्लेखनीय है कि राम मंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। करीब एक सदी में मंदिर को लेकर हर घटनाक्रम में पीठ के पीठाधीश्वरों की प्रभावी भूमिका रही है। महंत अवेद्यनाथ तो इस आंदोलन के शीर्ष लोगों में थे। राम मंदिर निर्माण के लिए भाजपा ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में ही प्रस्ताव पारित किया था। योगी ने पालमपुर की सभा में इसका जिक्र भी किया। संयोग से जब राममंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जब जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन हुआ और अब जब करीब दो साल से इसका निर्माण चल रहा है अवेद्यनाथ के शिष्य योगी आदित्यनाथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।

त्रेतायुग तक है पीठ एवं हिमाचल के रिश्ते का विस्तार
पीठ एवं हिमाचल के इस रिश्ते का विस्तार त्रेता युग तक जाता है। मान्यता है कि त्रेता युग में कांगड़ा में ज्वालादेवी के यहां आयोजन था। आमंत्रितों में गुरु गोरक्षनाथ भी थे। वहां निरामिष भोजन देख गोरखनाथ ने कहा, मैं तो भिक्षाटन से मिला अन्न ही खाता हूं। देवी ने कहा आप मांग कर लाओ, मैं बनाने के लिए तब तक पानी गर्म करती हूं। गोरखनाथ भिक्षाटन करते हुए गोरखपुर आ गए। उस समय गोरखपुर घने जंगलों से आच्छादित था। जंगल के बीच राप्ती एवं रोहिन नदी के संगम पर एक सुरम्य जगह देखकर वह साधनारत हो गए। इसी दौरान खिचड़ी का पर्व आया। लोगों ने एक तेजस्वी साधु को साधनारत देखा। उनके तेज से प्रभावित होकर लोग उनके सामने रखे खप्पर (भिक्षा पात्र) में चावल-दाल चढ़ाने लगे, पर वह पात्र भरने से रहा। यह देख लोग और प्रभावित हुए। तबसे गुरु गोरखनाथ गोरखपुर के हो गए। बाद में शहर का नाम भी उनके नाम पर पड़ा। साथ ही तभी से खिचड़ी पूर्वांचल का सबसे बड़ा पर्व हो गया। ज्वालादेवी ने खाना बनाने के लिए जो पानी गर्म होने के लिए चढ़ाया था, वह अब भी गर्म हो रहा है।

योगी को हाथोंहाथ लिया हिमाचल के लोगों ने
हिमालय एवं हिमाचल प्रदेश से इसी रिश्ते की वजह से हिमाचल के लोगों ने योगी आदित्यनाथ को हाथोंहाथ लिया। एक तरह से इस चुनाव में उनकी सभाओं की सर्वाधिक मांग रही। इन सभाओं में उन्होंने गोरक्षपीठ और हिमाचल के रिश्ते का जब-जब जिक्र किया तब-तब सभा परिसर जय श्रीराम और जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे जैसे नारों से गूंज उठता था।

India Edge News Desk

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